Lotus Temple Rd Bahapur, Kalkaji, New Delhi, Delhi 110019, India
Lotus Temple is a Tourist attraction located at Lotus Temple Rd Bahapur, Kalkaji, New Delhi, Delhi 110019, India. It has received 58604 reviews with an average rating of 4.5 stars.
Monday | 8:30AM-5PM |
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Tuesday | Closed |
Wednesday | 8:30AM-5PM |
Thursday | 8:30AM-5PM |
Friday | 8:30AM-5PM |
Saturday | 8:30AM-5PM |
Sunday | 8:30AM-5PM |
The address of Lotus Temple: Lotus Temple Rd Bahapur, Kalkaji, New Delhi, Delhi 110019, India
Lotus Temple has 4.5 stars from 58604 reviews
Tourist attraction
"Beautiful place लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है।मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। यहां पहुंचने के लिए कालका जी मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है। स्थापत्य संपादित करें मंदिर का स्थापत्य वास्तुकार फ़रीबर्ज़ सहबा ने तैयार किया है। इस मंदिर के निर्माण के बाद ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहाँ पर सभी जिज्ञासुयों के प्रश्नों का सहजता से उत्तर दिया जा सके। तब सूचना केंद्र के गठन के बारे में निर्णय लिया गया। सूचना केंद्र के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। इसको मार्च २००३ में जिज्ञासुओं के लिए खोला गया। सूचना केंद्र में मुख्य सभागार है, जिसमें करीब ४०० लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अतिरिक्त दो छोटे सभागार भी हैं, जिसमें करीब ७० सीटें है। सूचना केंद्र में लोगों को बहाई धर्म के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इसके साथ ही आगंतुकों को लोटस टेंपल की जानकारी दी जाती है। इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर है। जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के कमल मंदिर के अलावा छह मंदिर एपिया-पश्चिमी समोआ, सिडनी-आस्ट्रेलिया, कंपाला-यूगांडा, पनामा सिटी-पनामा, फ्रैंकफर्ट-जर्मनी और विलमाँट- संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं। प्रत्येक उपासना मंदिर की कुछ बुनियादी रूपरेखाएँ मिलती जुलती है तो कुछ अपने अपने देशों की सांस्कृतिक पहचानों को दर्शाते हुए भिन्न भी हैं। इस दृष्टि से यह मंदिर ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत को यथार्थ रूप देता हैं। इन सभी मंदिरों की सार्वलौकिक विलक्षणता है - इसके नौ द्वार और नौ कोने हैं। माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है। उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुंदरता को बढ़ता है बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान करते है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है। सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है। कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं। सन्दर्भ संपादित करें ये धर्म एक काल्पनिक धर्म है!ईस धर्म मे कुछ भी अपना नहीं है!इस धर्म में पूजा करने का तरीका इस्लाम,बोद्ध, ईसाई,यहुदी आदि धर्म से लिया गया है
इंतज़ार का समय
10 मिनट तक
ऐडवांस बुकिंग कर लें
पता नहीं"
"लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है। मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। यहां पहुंचने के लिए कालका जी मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है। स्थापत्य मंदिर का स्थापत्य वास्तुकार फ़रीबर्ज़ सहबा ने तैयार किया है। इस मंदिर के निर्माण के बाद ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहाँ पर सभी जिज्ञासुयों के प्रश्नों का सहजता से उत्तर दिया जा सके। तब सूचना केंद्र के गठन के बारे में निर्णय लिया गया। सूचना केंद्र के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। इसको मार्च २००३ में जिज्ञासुओं के लिए खोला गया। सूचना केंद्र में मुख्य सभागार है, जिसमें करीब ४०० लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अतिरिक्त दो छोटे सभागार भी हैं, जिसमें करीब ७० सीटें है। सूचना केंद्र में लोगों को बहाई धर्म के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इसके साथ ही आगंतुकों को लोटस टेंपल की जानकारी दी जाती है। इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर है। जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के कमल मंदिर के अलावा छह मंदिर एपिया-पश्चिमी समोआ, सिडनी-आस्ट्रेलिया, कंपाला-यूगांडा, पनामा सिटी-पनामा, फ्रैंकफर्ट-जर्मनी और विलमाँट- संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं। प्रत्येक उपासना मंदिर की कुछ बुनियादी रूपरेखाएँ मिलती जुलती है तो कुछ अपने अपने देशों की सांस्कृतिक पहचानों को दर्शाते हुए भिन्न भी हैं। इस दृष्टि से यह मंदिर ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत को यथार्थ रूप देता हैं। इन सभी मंदिरों की सार्वलौकिक विलक्षणता है - इसके नौ द्वार और नौ कोने हैं। माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है। उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुंदरता को बढ़ता है बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान करते है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है। सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है। कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं।"
"मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। मंदिर का स्थापत्य वास्तुकार फ़रीबर्ज़ सहबा ने तैयार किया है। इस मंदिर के निर्माण के बाद ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहाँ पर सभी जिज्ञासुयों के प्रश्नों का सहजता से उत्तर दिया जा सके। तब सूचना केंद्र के गठन के बारे में निर्णय लिया गया। सूचना केंद्र के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। इसको मार्च २००३ में जिज्ञासुओं के लिए खोला गया। सूचना केंद्र में मुख्य सभागार है, जिसमें करीब ४०० लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अतिरिक्त दो छोटे सभागार भी हैं, जिसमें करीब ७० सीटें है। सूचना केंद्र में लोगों को बहाई धर्म के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इसके साथ ही आगंतुकों को लोटस टेंपल की जानकारी दी जाती है। इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर है। जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के कमल मंदिर के अलावा छह मंदिर एपिया-पश्चिमी समोआ, सिडनी-आस्ट्रेलिया, कंपाला-यूगांडा, पनामा सिटी-पनामा, फ्रैंकफर्ट-जर्मनी और विलमाँट- संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं। प्रत्येक उपासना मंदिर की कुछ बुनियादी रूपरेखाएँ मिलती जुलती है तो कुछ अपने अपने देशों की सांस्कृतिक पहचानों को दर्शाते हुए भिन्न भी हैं। इस दृष्टि से यह मंदिर ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत को यथार्थ रूप देता हैं। इन सभी मंदिरों की सार्वलौकिक विलक्षणता है - इसके नौ द्वार और नौ कोने हैं। माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है। उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुंदरता को बढ़ता है बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान करते है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है। सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है। कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं।"
"लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है। सामान्य विवरणप्रकारउपासना स्थलवास्तुकला शैलीअभिव्यंजनात्मकस्थाननई दिल्ली, भारतनिर्माण सम्पन्न१९८६शुरुवातदिसंबर, १९८६प्राविधिक विवरणसंरचनात्मक प्रणालीकंक्रीट का ढांचा और पूर्व ढली खांचित छत फ़लकयोजना एवं निर्माणवास्तुकारफ़रीबर्ज़ सहबासंरचनात्मक अभियन्ताफ़्लिंट मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। यहां पहुंचने के लिए कालका जी मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है।
किस दिन गए थे
सार्वजनिक छुट्टी के दिन
इंतज़ार का समय
30–60 मिनट तक
ऐडवांस बुकिंग कर लें
नहीं"
"प्रवेश शुल्क: नि: शुल्क प्रवेश आने का समय: सुबह 9:00 से शाम 5"
Beautiful place लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है।मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। यहां पहुंचने के लिए कालका जी मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है। स्थापत्य संपादित करें मंदिर का स्थापत्य वास्तुकार फ़रीबर्ज़ सहबा ने तैयार किया है। इस मंदिर के निर्माण के बाद ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहाँ पर सभी जिज्ञासुयों के प्रश्नों का सहजता से उत्तर दिया जा सके। तब सूचना केंद्र के गठन के बारे में निर्णय लिया गया। सूचना केंद्र के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। इसको मार्च २००३ में जिज्ञासुओं के लिए खोला गया। सूचना केंद्र में मुख्य सभागार है, जिसमें करीब ४०० लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अतिरिक्त दो छोटे सभागार भी हैं, जिसमें करीब ७० सीटें है। सूचना केंद्र में लोगों को बहाई धर्म के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इसके साथ ही आगंतुकों को लोटस टेंपल की जानकारी दी जाती है। इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर है। जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के कमल मंदिर के अलावा छह मंदिर एपिया-पश्चिमी समोआ, सिडनी-आस्ट्रेलिया, कंपाला-यूगांडा, पनामा सिटी-पनामा, फ्रैंकफर्ट-जर्मनी और विलमाँट- संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं। प्रत्येक उपासना मंदिर की कुछ बुनियादी रूपरेखाएँ मिलती जुलती है तो कुछ अपने अपने देशों की सांस्कृतिक पहचानों को दर्शाते हुए भिन्न भी हैं। इस दृष्टि से यह मंदिर ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत को यथार्थ रूप देता हैं। इन सभी मंदिरों की सार्वलौकिक विलक्षणता है - इसके नौ द्वार और नौ कोने हैं। माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है। उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुंदरता को बढ़ता है बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान करते है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है। सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है। कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं। सन्दर्भ संपादित करें ये धर्म एक काल्पनिक धर्म है!ईस धर्म मे कुछ भी अपना नहीं है!इस धर्म में पूजा करने का तरीका इस्लाम,बोद्ध, ईसाई,यहुदी आदि धर्म से लिया गया है
इंतज़ार का समय
10 मिनट तक
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लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है। मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। यहां पहुंचने के लिए कालका जी मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है। स्थापत्य मंदिर का स्थापत्य वास्तुकार फ़रीबर्ज़ सहबा ने तैयार किया है। इस मंदिर के निर्माण के बाद ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहाँ पर सभी जिज्ञासुयों के प्रश्नों का सहजता से उत्तर दिया जा सके। तब सूचना केंद्र के गठन के बारे में निर्णय लिया गया। सूचना केंद्र के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। इसको मार्च २००३ में जिज्ञासुओं के लिए खोला गया। सूचना केंद्र में मुख्य सभागार है, जिसमें करीब ४०० लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अतिरिक्त दो छोटे सभागार भी हैं, जिसमें करीब ७० सीटें है। सूचना केंद्र में लोगों को बहाई धर्म के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इसके साथ ही आगंतुकों को लोटस टेंपल की जानकारी दी जाती है। इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर है। जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के कमल मंदिर के अलावा छह मंदिर एपिया-पश्चिमी समोआ, सिडनी-आस्ट्रेलिया, कंपाला-यूगांडा, पनामा सिटी-पनामा, फ्रैंकफर्ट-जर्मनी और विलमाँट- संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं। प्रत्येक उपासना मंदिर की कुछ बुनियादी रूपरेखाएँ मिलती जुलती है तो कुछ अपने अपने देशों की सांस्कृतिक पहचानों को दर्शाते हुए भिन्न भी हैं। इस दृष्टि से यह मंदिर ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत को यथार्थ रूप देता हैं। इन सभी मंदिरों की सार्वलौकिक विलक्षणता है - इसके नौ द्वार और नौ कोने हैं। माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है। उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुंदरता को बढ़ता है बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान करते है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है। सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है। कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं।
मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। मंदिर का स्थापत्य वास्तुकार फ़रीबर्ज़ सहबा ने तैयार किया है। इस मंदिर के निर्माण के बाद ऐसी जगह की जरूरत महसूस हुई, जहाँ पर सभी जिज्ञासुयों के प्रश्नों का सहजता से उत्तर दिया जा सके। तब सूचना केंद्र के गठन के बारे में निर्णय लिया गया। सूचना केंद्र के निर्माण में करीब पांच साल का समय लगा। इसको मार्च २००३ में जिज्ञासुओं के लिए खोला गया। सूचना केंद्र में मुख्य सभागार है, जिसमें करीब ४०० लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अतिरिक्त दो छोटे सभागार भी हैं, जिसमें करीब ७० सीटें है। सूचना केंद्र में लोगों को बहाई धर्म के बारे में जानकारी भी दी जाती है। इसके साथ ही आगंतुकों को लोटस टेंपल की जानकारी दी जाती है। इस मंदिर के साथ विश्वभर में कुल सात बहाई मंदिर है। जल्द ही आठवाँ मंदिर भी बनने वाला है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत के कमल मंदिर के अलावा छह मंदिर एपिया-पश्चिमी समोआ, सिडनी-आस्ट्रेलिया, कंपाला-यूगांडा, पनामा सिटी-पनामा, फ्रैंकफर्ट-जर्मनी और विलमाँट- संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं। प्रत्येक उपासना मंदिर की कुछ बुनियादी रूपरेखाएँ मिलती जुलती है तो कुछ अपने अपने देशों की सांस्कृतिक पहचानों को दर्शाते हुए भिन्न भी हैं। इस दृष्टि से यह मंदिर ‘अनेकता में एकता’ के सिद्धांत को यथार्थ रूप देता हैं। इन सभी मंदिरों की सार्वलौकिक विलक्षणता है - इसके नौ द्वार और नौ कोने हैं। माना जाता है कि नौ सबसे बड़ा अंक है और यह विस्तार, एकता एवं अखंडता को दर्शाता है। उपासना मंदिर चारों ओर से नौ बड़े जलाशयों से घिरा है, जो न सिर्फ भवन की सुंदरता को बढ़ता है बल्कि मंदिर के प्रार्थनागार को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान करते है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से है जो गौरव शांति एवं उत्कृष्ट वातावरण को ज्योतिर्मय करता है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएँ प्रदान करता है। सुबह और शाम की लालिमा में सफेद रंग की यह संगमरमरी इमारत अद्भुत लगती है। कमल की पंखुड़ियों की तरह खड़ी इमारत के चारों तरफ लगी दूब और हरियाली इसे इसे कोलाहल भरे इलाके में शांति और ताजगी देने वाला बनाती हैं।
लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है। सामान्य विवरणप्रकारउपासना स्थलवास्तुकला शैलीअभिव्यंजनात्मकस्थाननई दिल्ली, भारतनिर्माण सम्पन्न१९८६शुरुवातदिसंबर, १९८६प्राविधिक विवरणसंरचनात्मक प्रणालीकंक्रीट का ढांचा और पूर्व ढली खांचित छत फ़लकयोजना एवं निर्माणवास्तुकारफ़रीबर्ज़ सहबासंरचनात्मक अभियन्ताफ़्लिंट मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। यहां पहुंचने के लिए कालका जी मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है।
किस दिन गए थे
सार्वजनिक छुट्टी के दिन
इंतज़ार का समय
30–60 मिनट तक
ऐडवांस बुकिंग कर लें
नहीं
प्रवेश शुल्क: नि: शुल्क प्रवेश आने का समय: सुबह 9:00 से शाम 5.30 बजे; सोमवार को छोड़कर सभी दिन यात्रा की अवधि: 1-2 घंटे अगर आप दिन भर के लिए जा रहे हैं, तो पानी की बोतलें और स्नैक्स रखें, लेकिन आप अपने आस-पास के रेस्तरां और स्ट्रीट फ़ूड भी देख सकते हैं जो यहाँ ज़रूर आज़माएँ। लोटस टेम्पल अक्टूबर से मार्च के सर्दियों और वसंत के समय में यात्रा करने के लिए एक आदर्श है क्योंकि गर्मियों की चिलचिलाती गर्मी दिल्ली में यात्रा करने के लिए सुखद नहीं है। लोटस टेंपल के लिए निकटतम मेट्रो स्टेशन है वायलेट लाइन मार्ग के माध्यम से कालकाजी मंदिर मेट्रो स्टेशन। इसके अलावा, यह सार्वजनिक परिवहन और सड़क नेटवर्क के माध्यम से बारीक रूप से जुड़ा हुआ है ताकि आप इस स्थान तक पहुँचने के लिए बस या टैक्सी ले सकें। यह स्थान मूल रूप से ए बहाई हाउस ऑफ उपासना सभी प्रकार के धर्मों और धर्मों के लिए बनाया गया है। वास्तुकला अपने फूल जैसी आकृति के साथ एक अभिव्यक्तिवादी है जो फ़ारसी ड्राफ्ट्समैन फ़ारिबोरज़ साहबा द्वारा बनाया गया है जो कनाडा से आया है और जो मंदिर बनाया गया है उससे प्रेरित कमल के आकार के बारे में सबसे दिलचस्प है, यह कहा जाता है कि कमल एक प्रतीक है प्यार, पवित्रता और अमरता का। भारत के सबसे अधिक देखे जाने वाले आकर्षणों में से एक होने के नाते, यह दर्ज किया गया है कि इस स्थान पर प्रतिदिन 10,000 आगंतुक आते हैं और लगभग चार लाख पर्यटक लोटस टेम्पल का दौरा कर चुके हैं। इस हड़ताली वास्तुकला को बनाने के लिए लगभग 10,000 विविध आकार के सफेद पत्थर का उपयोग किया गया है। यह मंदिर जिस बहाई धर्म से जुड़ा हुआ है, उसके पास पूजा करने के लिए कोई मूर्ति, प्रतिमा या चित्र नहीं हैं। लोटस टेंपल को बहाई हाउस ऑफ उपासना भी कहा जाता है जो दिल्ली, भारत में स्थित एकमात्र है, जबकि अन्य छह उपासना के कुल सात बहाई घर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं, यानी सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में; पनामा सिटी, पनामा; आपिया, पश्चिमी समोआ; कंपाला, युगांडा; फ्रैंकफर्ट, जर्मनी और विल्मेट, यूएसए। इस जगह में प्रवेश करना बहुत पसंद हैनिर्मल स्वर्ग जहाँ सभी धर्मों और धर्मों का अपना स्थान है, जहाँ धर्मों के आधार पर भेदभाव किए बिना ईश्वर के पास प्रार्थनाएँ की जाती हैं और सभी मनमोहक आकर्षक उद्यानों की यात्रा करते हुए आप स्वयं को शांति की दिव्य आभा से ढँक पाएंगे। कमल हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और इस्लाम जैसे विविध धर्मों के लिए भी एक सामान्य संकेत है। कमल मंदिर सफेद संगमरमर से बना है और वहाँ हैं नौ जल कुंड पंखुड़ी संरचना के चारों ओर और इन पूलों को रोशनी से सजाया जाता है, जिससे यह किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देता है!
लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है।मंदिर का उद्घाटन २४ दिसंबर १९८६ को हुआ लेकिन आम जनता के लिए यह मंदिर १ जनवरी १९८७ को खोला गया। इसकी कमल सदृश आकृति के कारण इसे कमल मंदिर या लोटस टेंपल के नाम से ही पुकारा जाता है। बहाई उपासना मंदिर उन मंदिरों में से एक है जो गौरव, शांति एवं उत्कृष्ठ वातावरण को ज्योतिर्मय करता है, जो किसी भी श्रद्धालु को आध्यात्मिक रूप से प्रोत्साहित करने के लिए अति आवश्यक है। उपासना मंदिर मीडिया प्रचार प्रसार और श्रव्य माध्यमों में आगंतुकों को सूचनाएं प्रदान करता है। मंदिर में पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए विस्तृत घास के मैदान, सफेद विशाल भवन, ऊंचे गुंबद वाला प्रार्थनागार और प्रतिमाओं के बिना मंदिर से आकर्षित होकर हजारों लोग यहां मात्र दर्शक की भांति नहीं बल्कि प्रार्थना एवं ध्यान करने तथा निर्धारित समय पर होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेने भी आते हैं। यह विशेष प्रार्थना हर घंटे पर पांच मिनट के लिए आयोजित की जाती है। गर्मियों में सूचना केंद्र सुबह ९:३० बजे खुलता है, जो शाम को ६:३० पर बंद होता है। जबकि सर्दियों में इसका समय सुबह दस से पांच होता है। इतना ही नहीं लोग उपासना मंदिर के पुस्तकालय में बैठ कर धर्म की किताबें भी पढ़ते हैं और उनपर शोध भी करने आते हैं। यहां पहुंचने के लिए कालका जी मेट्रो स्टेशन सबसे नजदीक है।
Lotus Temple ,Delhi The 'Lotus Temple' is located in New Delhi, India. It is a Baha'is House of Worship. The beautiful Lotus shaped Temple was opened in the year 1986, and since then has invited a number of visitors to its premises. The Lotus Temple is open to people of all faith. The entry to the temple is through a gate that leads to a pathway with landscaped gardens on both side. We have to take off our shoes and deposit them in the shoe keeping centre. From there, we have to stand in a queue and should wait for our turn. Once inside, complete silence and peace will take over. People of different religions sit and pray there. The inside hall has nine doors and a capacity to seat 2500 people at one time. The Lotus Temple has won numerous architectural awards and been featured in hundreds of newspaper and magazine articles. Notable for its flowerlike shape, it serves as the Mother Temple of the Indian subcontinent and has become a prominent attraction in the city. ▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️ ▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️▪️ लोटस टेम्पल, दिल्ली 'लोटस टेम्पल' नई दिल्ली, भारत में स्थित है। यह बहाई पूजा का घर है। सुंदर कमल के आकार का मंदिर वर्ष 1986 में खोला गया था, और तब से इसके परिसर में कई आगंतुकों को आमंत्रित किया गया है। लोटस टेंपल सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला है। मंदिर में प्रवेश एक द्वार के माध्यम से होता है जो एक मार्ग की ओर जाता है जिसके दोनों ओर प्राकृतिक उद्यान हैं। हमें अपने जूते उतारकर शू कीपिंग सेंटर में जमा करने हैं। वहां से हमें कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए। एक बार अंदर जाने के बाद, पूर्ण मौन और शांति छा जाएगी। विभिन्न धर्मों के लोग वहां बैठकर प्रार्थना करते हैं। अंदर के हॉल में नौ दरवाजे हैं और एक समय में 2500 लोगों के बैठने की क्षमता है। लोटस टेम्पल ने कई वास्तुशिल्प पुरस्कार जीते हैं और सैकड़ों समाचार पत्रों और पत्रिका लेखों में चित्रित किया गया है। अपने फूलों के आकार के लिए उल्लेखनीय, यह भारतीय उपमहाद्वीप के माता मंदिर के रूप में कार्य करता है और शहर में एक प्रमुख आकर्षण बन गया है। rv
Lotus temple Very beautiful place. Lotus temple ko architecture ke roop me ek masal hai Ye duniya ke beautiful building me se ek hai. Yeh mandir abhi dharmo ko apsme me jodne ka kaam karta hai Yeh sabhi dharmo ke log door door se ghoomne aate hai Jab me yah goomne Aya tu mene dekha es mandir koi murti nhi hai aur yeh mandir ki khasbat lagi mujhe. Kamal ki khasiyat hi yeh hai ki kichad me ugne ke baad bhi pavitra hota hai Sabhi logo ko yah aana ghoomne aana chahiye koiki yah Mann ko duniya ke sor sarbe se santi milti hai. Mera naam Anuj Rajput hai mujhe yeh ghoomne me bahut aachha lga lakin ap sabhi se request hai ki kachda na kare, Hamare desh ke logo me ek buri adat hai gutka pan masala khane ki, Bese gutka pan masala khana koi badi baat nhi lekin gutka kha kar idar udar gutka thukte hai thukna bahut galat adat hai. Gutka pan masala ke alaba bhi kai aur tarah ki gandgi hai. Jab me yah dhomne ke liye Aya tu mene Dekha ki kai jagah gutka thuka pada h Gandgi feli hai Hame gandgi nhi karni chahiye, Hame apne state ko apne Desh ko saaf swaksh rakhna chahiye. Aur apne Desh ki tarkki me apna yogdan de. Keep smiling. Thank you
It's beautiful place। आप लोटस टेंपल जाने के लिए कालका मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। बहुत ही सुन्दर जगह है। यहां वाटर शो होता है,90 रुपया लगता है watar show का। लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस (कालकाजी मंदिर) के पास स्थित एक बहाई (ईरानी धर्मसंस्थापक बहाउल्लाह के अनुयायी) उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। भारत के लोगों के लिए कमल का फूल पवित्रता तथा शांति का प्रतीक होने के साथ ईश्वर के अवतार का संकेत चिह्न भी है। यह फूल कीचड़ में खिलने के बावजूद पवित्र तथा स्वच्छ रहना सिखाता है, साथ ही यह इस बात का भी द्योतक है कि कैसे धार्मिक प्रतिस्पर्धा तथा भौतिक पूर्वाग्रहों के अंदर रह कर भी, कोई व्यक्ति इन सबसे अनासक्त हो सकता है। कमल मंदिर में प्रतिदिन देश और विदेश के लगभग आठ से दस हजार पर्यटक आते हैं। आनेवाले सभी पर्यटकों को बहाई धर्म का परिचय दिया जाता है और मुफ्त बहाई धार्मिक सामग्री वितरित की जाती है। यहाँ का शांत वातावरण प्रार्थना और ध्यान के लिए सहायक है।
The Lotus Temple, located in Delhi, India, is a Bahai House of Worship that was dedicated in December 1986. Notable for its lotuslike shape, it has become a prominent attraction in the city. Like all other Bahá’í Houses of Worship, the Lotus Temple is open to all, regardless of religion or any other qualification. लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस के पास स्थित एक बहाई उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। The temple's shape has symbolic and inter-religious significance because the lotus is often associated with the Hindu goddess Lakshmi. The nine doors of the Lotus Temple open onto a central hall 34.3 meters tall that can seat 1,300 people and hold up to 2,500 in all.
दिल्ली के दक्षिण-पूर्व में स्थित, लोटस टेम्पल 1986 में बनाया गया था और इसका नाम खिलते हुए कमल के फूल के आकार के आधार पर रखा गया था। हालाँकि यह एक हाई चैपल है, किसी भी जाति और धर्म के लोग महान समावेशिता दिखाते हुए यहाँ प्रार्थना कर सकते हैं। मंदिर सफेद संगमरमर से बनाया गया है, जो दूर से सफेद पंखुड़ियों की तीन परतों जैसा दिखता है, और "कमल" नौ साफ पानी के कुंडों द्वारा समर्थित है। ऊँचे और खाली मंदिर में न तो मूर्तियाँ हैं और न ही नक्काशी और भित्ति चित्र जैसी सजावट है। चिकने फर्श पर सफेद संगमरमर की बेंचों की कतारें और कुर्सी के लिए एक मंच स्थापित किया गया था। मंदिर में प्रवेश करने के लिए किसी विशेष समारोह की आवश्यकता नहीं है, और चाहे आपका कोई भी धर्म हो, किसी को भी केवल अपने जूते उतारकर मंदिर में प्रवेश करना होगा, बैठना होगा और ध्यान करना होगा और प्रार्थना करनी होगी।
इंतज़ार का समय
एक घंटे से ज़्यादा
ऐडवांस बुकिंग कर लें
नहीं
मंदिर है दिल्ली में स्थित है इन सभी धर्मों के लिए है यहां पर सभी धर्मों के लोग प्रार्थना करने के लिए और इसे देखने के लिए यहां आते हैं लोटस टेंपल बहुत बड़ा है इसमें कम से कम 1000 आदमी बैठ कर प्रार्थना कर सकते हैं यह दिन को खुला रहता है एवं रात को बंद हो जाता है इसकी एंट्री बिल्कुल फ्री है बहुत बड़ा मंदिर है यह सभी धर्मों के लिए है इसमें सभी धर्म के लोग आकर इस में प्रार्थना करते हैं और इस के आजू-बाजू जो घास लगी हुई है बहुत जगह में है यहां पर विदेश के लोग भी आते हैं और यहां का आनंद लेते हैं बहुत अच्छा लगता है इसको देखने पर इसके चारों तरफ पानी के फव्वारे लगे हुए हैं और चारों तरफ घास है इसके अंदर श्लोक शांति से बैठते हैं और प्रार्थना करते हैं और जो घूमते हैं वह बाहर घूमना फिर ना करते रहते हैं और जो प्रार्थना करने आते हैं वह अंदर बैठ कर प्रार्थना करते हैं और अंदर मोबाइल चलाना है फोन पर बात करना बौद्धिक किया गया है
दिल्ली का प्रसिद्ध जगह अगर आप दिल्ली घूमने का प्लान बना रहे हैं तो इंडिया गेट और लाल किले के अलावा एक और डेस्टिनेशन है जो दिल्ली के प्रमुख आकर्षणों में से एक है और वह है लोटस टेंपल। दिल्ली के नेहरू प्लेस में स्थित लोटस टेंपल एक बहाई उपासना मंदिर है, जहां न ही कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार की पूजा पाठ की जाती है। लोग यहां आते हैं शांति और सुकून का अनुभव करने। कमल के समान बनी इस मंदिर की आकृति के कारण इसे लोटस टेंपल कहा जाता है। इसका निर्माण सन 1986 में किया गया था। यही वजह है कि इसे 20वीं सदी का ताजमहल भी कहा जाता है। कैसे पहुंचें ,? यहां पहुंचने के लिए आप मेट्रो का प्रयोग कर सकते हैं। नेहरू प्लेस से कालका जी मेट्रो स्टेशन पहुंचने के बाद 5 मिनट में पैदल चलकर या फिर कोई रिक्शा करके आप यहां पहुंच सकते हैं।
किस दिन गए थे
सार्वजनिक छुट्टी के दिन
Lotus temple bhai ye place bhaut hi peaceful hai aap jese hi iske ander jaaoge ek alg hi type ki energy feel kroge apne ander or yha park bi bhaut hi sunder hai. Ye totally free hai aapko yha pr koi ticket purchase krne ki jarurat nhi hai. Agr aap kisi baat se preshan ho ya aapka mind bhaut disturb mehsoos krta hai or aap chahte ho ki aap ko khi shaant mahol mai jana hai aap relax mehsus kro to bhai ye place aapke liye hi bna hai. Ek baar visit krke btana jarur aapko ye place kesa lga. Or review acha lge to bhai like jarur karna. Thank you
किस दिन गए थे
कामकाजी दिन (वीकडे)
इंतज़ार का समय
इंतज़ार नहीं करना पड़ता
ऐडवांस बुकिंग कर लें
नहीं
The lotus temple in south Delhi is a very attractive centre. Nearest metro station is kalka ji and kalka ji temple is also close to it. These are again opened along with guidelines for the tourists. Wearing a mask is mandatory. There does not seem to be any ticket charge to go. Thanks साउथ दिल्ली में स्थित लोटस मंदिर बहुत ही आकर्षक केंद्र है। नजदीकि मेट्रो स्टेशन कालका जी है और कालका जी मंदिर भी इसके नजदीक है covid १९ के बाद ये दोबारा पर्यटकों के लिए जरूरी गाइडलाइंस के साथ खोल दिए गए है। मास्क पहनना अनिवार्य है। इसमें जाने का कोई टिकट चार्ज नहीं लगता है । धन्यवाद । आपको इसके regarding koi bhi jankari chahiye to comment box me comment kar sakte hai
The Lotus Temple, located in Delhi, India, is a Baháʼí House of Worship that was dedicated in December 1986. Notable for its flowerlike shape, it has become a prominent attraction in the city. Like all other Bahá’í Houses of Worship, the Lotus Temple is open to all, regardless of religion or any other qualification. लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस के पास स्थित एक बहाई उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। Source @Wikipedia
कमल के समान बनी इस मंदिर की आकृति के कारण इसे लोटस टेंपल कहा जाता है। इसका निर्माण सन 1986 में किया गया था। इसके निर्माण में करीब 1 करोड़ डॉलर की लागत आई थी। मंदिर आधे खिले कमल की आकृति में संगमरमर की 27 पंखुड़ियों से बनाया गया है, जो कि 3 चक्रों में व्यवस्थित हैं। मंदिर चारों ओर से 9 दरवाजों से घिरा है और बीचोंबीच एक बहुत बड़ा हॉल स्थित है। जिसकी ऊंचाई 40 मीटर है इस हॉल में करीब 2500 लोग एक साथ बैठ सकते हैं। कैसे पहुंचें यहां पहुंचने के लिए आप मेट्रो का प्रयोग कर सकते हैं। नेहरू प्लेस से कालका जी मेट्रो स्टेशन पहुंचने के बाद 5 मिनट में पैदल चलकर या फिर कोई रिक्शा करके आप यहां पहुंच सकते हैं।
जगह काफी अच्छी है, यह पूजा करने के लिए मंदिर नहीं है बल्कि एक बड़े हॉल में अपने मन को शांत करने और ध्यान लगाने की जगह है और टिकट खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रवेश निःशुल्क है। सूचना केंद्र हमें जगह और उसके इतिहास के बारे में अधिक समझने में मदद करता है। लोटस टेम्पल ने कई वास्तुशिल्प पुरस्कार जीते हैं और कई समाचार पत्रों और पत्रिका लेखों में चित्रित किया गया है। कुल मिलाकर मंदिर में जाना एक अच्छा अनुभव है और आपको शांति भी देता है लेकिन आपके आस-पास बहुत सारे लोगों के साथ, यह मुश्किल हो जाता है तो कृपया वहाँ जरूर जाएँ मन को बहुत शांति और प्रसन्नता प्राप्त होगी।।
लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस के पास स्थित एक बहाई उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं। साफ़ सफ़ाई भी काफी ज्याद कर रखी थी आप अपनी फैमली के साथ जरूर आए..... सोमवार को Lotus Temple बंद रहता हैं है.. Nearest Metro Station kalaji Mandir Metro Station
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10 मिनट तक
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लोटस टेंपल भारत के दिल्ली में स्थित है इसकी स्थापना 1869 ईस्वी में हुई थी इसकी संरचना कमल के जैसा है इसलिए इसको लोटस टेंपल भी कहा जाता है यहां पर आप को एंट्री के समय कैमरा बंद करवा दिया जाता है। एनसीसी ट्रेनिंग भी होती है। लोग बहुत दूर दूर से देखने आते हैं इस मंदिर को। लोटस टेंपल के बगल में कल्काजी मंदिर है आप चाहे तो वहां भी घूम सकते हैं भगवान का दर्शन कर सकते हैं।
किस दिन गए थे
सार्वजनिक छुट्टी के दिन
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Embracing the spiritual vibes at the Lotus Temple. लोटस टेम्पल की शांति के बीच शांति ढूँढना। ✨ लोटस टेम्पल में आध्यात्मिक तरंगों को अपनाते हुए। लोटस टेम्पल की स्थापत्य सुंदरता से आश्चर्यचकित हूं। ️ लोटस टेम्पल में दिल्ली के मध्य में शांति की खोज। लोटस टेम्पल: आत्मा के लिए एक अभयारण्य।
किस दिन गए थे
हफ़्ते के आखिर में (वीकेंड)
इंतज़ार का समय
10 मिनट तक
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It's amazing place भाई क्या ही कहूं इस जगह के बारे मैं अदभुत कारीगरी है और लोटस के अंदर बैठने की जगह है जहां आप सांति से बैठ सकते हो ।। और जितनी देर बैठ सकते हो बैठ जाओ अच्छा लगता है ।। आप अपनी फैमिली या पार्टनर के साथ आकर यहां सांती से ध्यान लगा सकते हो
किस दिन गए थे
हफ़्ते के आखिर में (वीकेंड)
इंतज़ार का समय
इंतज़ार नहीं करना पड़ता
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दिल्ली के नेहरू प्लेस में स्थित लोटस टेंपल एक बहाई उपासना मंदिर है, जहां न ही कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार की पूजा पाठ की जाती है। लोग यहां आते हैं शांति और सुकून का अनुभव करने। कमल के समान बनी इस मंदिर की आकृति के कारण इसे लोटस टेंपल कहा जाता है। इसका निर्माण सन 1986 में किया गया था। यही वजह है कि इसे 20वीं सदी का ताजमहल भी कहा जाता है।
Lotus temple bahut hi sunder design kiya hua temple hai. Yaha charo taraf garden bana hua hai. Mandir ke samne bhag me pond bana hua hai. Yaha entry fees nahi hai. Saalbhar me kabhi bhi aap temple visit kar sakte hai. Mandir parisar me pray karne ke liye hall hai. Baithne ke liye bench laga hua hai. Yaha temple ke under photo lena mana hai.
दिल्ली के नेहरू प्लेस में स्थित लोटस टेंपल एक बहाई उपासना मंदिर है, जहां न ही कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार की पूजा पाठ की जाती है। ... कमल के समान बनी इस मंदिर की आकृति के कारण इसे लोटस टेंपल कहा जाता है। इसका निर्माण सन 1986 में किया गया था। यही वजह है कि इसे 20वीं सदी का ताजमहल भी कहा जाता है | #Lotus Temple
Weekends par mat Jana, ye reel walo n sb places ki maa-bhen kr rakhi h photos and videos k leye dusro ka comfort krb krte hai i think aise places par mobile phones ban hone chahiye thank you
किस दिन गए थे
हफ़्ते के आखिर में (वीकेंड)
इंतज़ार का समय
30–60 मिनट तक
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नहीं
नई दिल्ली स्धित बहाई टेंपल 1986 में जनता के लिये खोला गया। यह कमल के फूल की आकृति में निर्मित है। इसका आकार काफी बड़ा व बनावट काफी खूबसूरत है। चारों और बने नीले तालाब और हरियाली इसे एक खूबसूरत दर्शनीय स्थल बनाते हैं। अंदर एक शांत, खुला एवम हवादार हाल है जहां बैठकर दर्शक अपने ईष्ट को याद कर सकते हैं।
लोटस टेंपल या कमल मंदिर, भारत की राजधानी दिल्ली के नेहरू प्लेस के पास स्थित एक बहाई उपासना स्थल है। यह अपने आप में एक अनूठा मंदिर है। यहाँ पर न कोई मूर्ति है और न ही किसी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड किया जाता है, इसके विपरीत यहाँ पर विभिन्न धर्मों से संबंधित विभिन्न पवित्र लेख पढ़े जाते हैं।
Gye the kalka mandir phir man kiya to lotus bhi ghum aye free tha n isliye aate wqt bhandara bhi kha liya phir side wle park se iskcon mandir bhi ghum aye phir sidha ghr aa gya kyuki paise khtm ho gye Moral : You can visit lotus temple, kalakji temple and iskcon temple in Rs..50 :^)
This is a best place for everyone when i went there to hum yaha 1 mam se mile to unhone hame waha ke bare me bataya means she told us everything about this temple jab aap waha jaye to temple ma jane ke baad study center and book center me bhi jarur jaye Thankyou
पौराणिक तकनीक से बनी बेहद ही उम्दा भवन/मंदिर । मंदिर में बैठ कर 40° तापमान में भी 27° का अहसास होता है इसका कारण है इसे बनाने का तकनीक ।
किस दिन गए थे
हफ़्ते के आखिर में (वीकेंड)
इंतज़ार का समय
एक घंटे से ज़्यादा
ऐडवांस बुकिंग कर लें
नहीं
Jagah badhiya hai par thodi out side me padti hai Delhi me, or as per me thodi safe bhi nahi hai raat ko late ghumne ko yaha, baaki Kalkaji Metro station se 1.5 km approx hai walking distance hai. Aas paas acchi shops nahi hai khane peene ki bus thele hai.
For visiting it's good but no relaxation to the visitors. एक पैर पर जाइए और उसीपर निकल जाना पड़ता है।। जूते चप्पल प्लास्टिक के bag में डालकर मंदिर के अन्दरवाले हिस्से में बैठना पड़ता है।। Visitors के लिए थोडा तो गार्डन या रास्ते में बैठने का बनना चाहिए।।
This not a picknik point,ye ek mandir hai ,jo abdul bah ki smriti main bnaya gya hai,aese hi or bhi mandir bnaye gye hai,vese to aap kisi bhi time tha ja skte hai lekin agar aap evening main yha jate hai to bahut hi achha view apko dekhne … ज़्यादा
लोटस टेंपल, भारत में दिल्ली में स्थित है, एक बहाई हाउस ऑफ उपासना है जो दिसंबर 1986 में समर्पित की गई थी, जिसकी लागत 10 मिलियन थी। अपनी फूलों जैसी आकृति के लिए उल्लेखनीय, यह शहर में एक प्रमुख आकर्षण बन गया है। धर्म के सभी बहाई घरों की तरह, … ज़्यादा
Bhai Dharm ka sabse bada Mandir hai India mein Lotus temple bahut bada Mandir hai bahut beautiful Mandir hai Monday ko band rahata hai Kalkaji Mandir metro station ke pass nahin padta hai yah location bahut acchi hai aur Pret bahut aate Hain
बहुत खुबसूरत जगह है आप को कम-से-कम एक बार आने चाहिए पास में मेट्रो स्टेशन कालकाजी मंदिर है 5 मिंट का रास्ता है पैदल
किस दिन गए थे
कामकाजी दिन (वीकडे)
इंतज़ार का समय
इंतज़ार नहीं करना पड़ता
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नहीं
there are gardens and a few buildings and not much else यहां बगीचे हैं और कुछ इमारते हैं और ज्यादा कुछ नहीं
किस दिन गए थे
हफ़्ते के आखिर में (वीकेंड)
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30–60 मिनट तक
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नहीं
Lotus temple ek bahut hi achcha aur dharmik place hai Jahan log jaate Hain vahan ghumte Hain aur uske andar jakar apni manokamnaen mangte Hain aur achcha feel hota hai Lotus temple is a very good place on Delhi plz visit now
Not at all worthful.. इतना धूप में चलो और फिर लाइन में लगने के बाद देखने को कुछ नहीं। जूते हाथ में लेकर घूमो, और उन्हें लेकर ही प्रार्थना हाल में बैठ जाओ। वहां भी कुछ नहीं बस जाओ, बैठ जाओ और थोड़ी देर में उठकर चले जाओ।
dont go on vacation days baht bheed hoti hai 1km long line hoti hai aur baki sab badhiya hai yaha
किस दिन गए थे
सार्वजनिक छुट्टी के दिन
इंतज़ार का समय
एक घंटे से ज़्यादा
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नहीं
It's osm palace!!!!!!! Yaha jaake aapko sukun feel hota hai & ager aap yaha jaate hai to aapko ander jaroor jana chahiye...... Yeh temple ko Baha'i dharm ne banwaya tha Aur isme sab dharm ke log jaate hai....
Maine or meri maa ne vaha bahut achchha samay bitaya. Sabse achchhi baat hame ye lagi ki sabhi dharmo ko saman mana gaya hai . Jo jis Dharma se ho vo apne Esht ko apne sammukh man kar prarthana kar sakta hai.
काफ़ी खूबसूरत जगह है फरवरी मार्च के माह मे आपको यहाँ सबसे बढ़िया व्यू मिलेगा. वैसे यहाँ भीड़ काफ़ी होती है अंदर सिनेमा हॉल भी है यह काफ़ी बड़ा है साफ सफाई का विशेष ध्यान रहता है प्रशासन का. 5/4
Baaresh me band ho gya lots templates bina dekhe wapas aana pda
किस दिन गए थे
सार्वजनिक छुट्टी के दिन
इंतज़ार का समय
एक घंटे से ज़्यादा
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पता नहीं
Bauth hi mast jaghe hai, delhi aao to yaha jarur se jarur aana. Entry v free hai, and metro se Lotus temple 50₹ me chor dega(3 person). Photo shoot ke liye bahut hi acha jaghe hai.
Awesome jagah hai bhai....but yaha ke security guards or staff itna third class hai dubaar kabi bhi aane ki nahi socho ge.... Staff and all security guard very-very third class...
कुछ दिन पहले मैं और मेरे साथी सहित हम कमल मंदिर यानी लोट्स मंदिर को व्हिझिट देने गये थे, यह काफ़ी शानदार और शांतिपूर्ण स्थल है जहां पर सभी धर्मीयों को आने की अनुमति है। … ज़्यादा
Parking- यहां पर गेट के सामने कालकाजी मंदिर और लोटस मंदिर की combined पार्किंग है और मेट्रो के नीचे भी पार्किंग है तो आराम से जाइये View-अच्छी जगह है ,जा सकते है एक बार बस,
Yaha Aaiye or apko alag duniya se alag santi milegi
किस दिन गए थे
कामकाजी दिन (वीकडे)
इंतज़ार का समय
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नहीं
Nice palace bahut clean jagah hai andar ek church bhi hai jismain pirathna bhi hoti hai niche ek swimming pool hai bt swimming ke liye nhi hai pure white hai lotus temple
I love this place. Corona time me social distancing ka achhe se dhyan rakha gya hai...aur iss time me jyda bheed bhi nhi hai..to ye aur bhi khoobsurat lg rha h..
Bahut hi acchha temple hai. The peace is here
किस दिन गए थे
कामकाजी दिन (वीकडे)
इंतज़ार का समय
एक घंटे से ज़्यादा
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हां
कमल के समान बनी इस मंदिर की आकृति के कारण इसे लोटस टेंपल कहा जाता है। इसका निर्माण सन 1986 में किया गया था। यही वजह है कि इसे 20वीं सदी का ताजमहल भी … ज़्यादा
लोटस मंदिर बहुत ही सुंदर है और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और हर धर्म का आदमी यहां आकर आपने परमात्मा को याद करता है और चपला जूतों का यहां पर विशेष इंतजाम है
Jhola thama dete hain, kahin insaan baith k vibe enjoy nahi kar sakta .. whole area i.e. garden and other picturesque places for relaxing are restricted .
घूमने के लिए शानदार जगह
किस दिन गए थे
सार्वजनिक छुट्टी के दिन
इंतज़ार का समय
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पता नहीं
Gjb ka architecture he
किस दिन गए थे
हफ़्ते के आखिर में (वीकेंड)
इंतज़ार का समय
10–30 मिनट तक
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पता नहीं
I like it but jis time me gyi thi us time corona tha so I'm not enjoy but bhot acha h ye jaisa photo me h bilkul wesa hi h real me bhi …
दिल्ली के महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के रूप में मशहूर दर्शनीय स्थल लोटस टेंपल बहाई सम्प्रदाय के द्वारा 1980 के दशक में निर्मित हरित और शांत वातावरण ❤️❤️
यह मंदिर ठीक है पर बाहर लगने वाली लाइन बहुत लंबी होती है और उसमे बहुत समय लगता है, यदि एंट्री गेट 3-4 कर दिए जाएं तो जनता को और सुविधा होगी।
Achha jagha h gumne ka
किस दिन गए थे
हफ़्ते के आखिर में (वीकेंड)
इंतज़ार का समय
10–30 मिनट तक
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नहीं
लोटस टेंपल बहुत ही खूबसूरत टेंपल है जो कि बहाइ धर्म का प्रतीक है, सुंदर व स्वच्छ मंदिर, फोटो शूट के शौकीन लोग एक बार घूमने जरूर जाएं
लोटस टेंपल में जो अंदर प्रार्थना की जाती है वह समझ में नहीं आती लेकिन टेंपल के अंदर बाहर साफ-सफाई का बहुत विशेष ध्यान रखा गया है
This temple is a very peaceful place in Delhi. Yahan aapko jyadatar videsh ke aadmi mil jayange.To aap ek baar zaroor gaiye .
Jay Shanti ka yogdan hai ya bahut Sundar Sthan Hai Ya Jaane ka Sthan Bada Achcha hai ya Delhi ke Kalkaji ilake mein sthit hai
अगर आप को सिर्फ garden मैं घूमने जाना है,तो आप जरूर जाये,यह एक विदेशी धर्म का ध्यान केंद्र हैl photo अच्छे क्लिक होंगे l
जगह तो कमाल की है लेकिन मैं गर्मी में पहुंच गया था । नंगे पांव, शदीद गर्मी, प्यासे होंठ... पर मज़ा आया घूमकर …
बहुत ही खूबसूरत जगह है में ओर मेरी पत्नी जोकि पहली बार दिल्ली आयी उसको खूब पसंद आया,हम सब 26 मई 2019 को घूम के आये
Good bahoot bhishan garmi kirpaya winter time mai jaaye or agr garmi mai jana ho to normal dress normal sleeper
Bas bahar se dekhne me sundara hi Or Andara pry karne ke liye hai ....... Beg wagera andar allow nahi hai
पर्यटन स्थल जिसकी सुंदरता अद्भुत है,,, समय मिले तो जरूर पहुंचे यहाँ का मनोरम दृश्य आपके मन को आकर्षित करेगा
A wonderful historical place. Jab bhi aap Delhi ghoomne aaye ek baar zaroor visit kare.
Monday holiday hota hai Good , bahut hi peace rehta hai temple k inner side mein
Maja aa gya bhai sahab …
किस दिन गए थे
कामकाजी दिन (वीकडे)…
ज़्यादा
Jai shree Ram Yaha aane se sab dukh hote hai dur …
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Apne mandiro mai jao....mai bhi galti Kiya kuch nhi h..
Lotus temple shanti ke pratik ke roop me banaya gaya h
Ess se acha aap kalka ji mandir ma jakar pray kar lo
Main ek baar aur jana chahunga yaha, aur kum se kum
Bahut acchi jgh h...Lots of people there..
Hii lotus me laptop milta ha
152693 reviews
Netaji Subhash Marg, Lal Qila, Chandni Chowk, New Delhi, Delhi, 110006, India
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M64M+92V, Chandni Chowk Rd, Maliwara, Chatta Pratap, Chandni Chowk, New Delhi, Delhi, 110006, India
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22760 reviews
Westend Marg, Saidulajab, Saiyad ul Ajaib, Saket, New Delhi, Delhi 110030, India